आईएएस की परीक्षा में पूंछे गये प्रश्‍न सन 2014 :- 2

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निम्नलिखित 8 (आठ) प्रश्नांशों के लिए निर्देश :
निम्नलिखित दो परिच्छेदों को पढ़िए और प्रत्येक परिच्छेद के आगे आने वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इन प्रश्नांशों के आपके उत्तर इन परिच्छेदों पर ही आधारित होने चाहिए।
परिच्छेद – 1
हिमालय का पारितंत्र भूवैज्ञानिक कारणों और जनसंख्या के बढ़े हुए बोझ, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और अन्य संबंधित चुनौतियों से जन्य दबाव के कारण, क्षति के प्रति अत्यंत सुभेद्य है। सुभेद्यता के ये पहलू जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण उत्तेजित हो सकते हैं। यह संभव है कि जलवायु परिवर्तन हिमालय के पारितंत्र पर, बढ़े हुए तापमान, परिवर्तित वर्षण प्रतिरूप, अनावृष्टि की घटनाओं और जीवीय प्रभावों के माध्यम से, प्रतिकूल प्रभाव डाले। यह न केवल उच्चभूमियों में रहने वाले देशज समुदायों के पूरे निर्वाह पर, बल्कि सारे देश में और उसके परे अनुप्रवाह क्षेत्र में रहने वाले निवासियों के जीवन पर भी असर डालेगा। इसलिए, हिमालय के पारितंत्र की धारणीयता बनाए रखने के लिए विशेष ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए सभी निरूपक प्रणालियों के संरक्षण के लिए सचेत प्रयत्न करने की आवश्यकता होगी।
आगे, इस पर बल देने की आवश्यकता है कि सीमित व्याप्ति वाले और बहुधा विशेषीकृत आवासीय आवश्यकताओं वाले विशेषक्षेत्री घटक सर्वाधिक सुभेद्य घटकों में से हैं। इस संदर्भ में, हिमालय का जैवविविधता वाला तप्तस्थल, जो विशेषक्षेत्री विविधता से संपन्न है, जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य है। इसके खतरों में, आनुवंशिक संसाधनों और जातियों, आवासों का संभावित क्षय और सहगामी रूप से, पारितंत्र के लाभों में कमी का आना शामिल है। इसलिए, इस क्षेत्र के लिए संरक्षण योजनाएं बनाते समय, निरूपक पारितंत्रों/आवासों में विशेषक्षेत्री घटकों के संरक्षण का अत्यंत महत्त्व हो जाता है।
उपर्युक्त को हासिल करने की दिशा में, हमें समकालीन संरक्षण उपागमों की ओर ध्यान अंतरित करना होगा, जिसमें संरक्षित क्षेत्र-प्रणालियों के बीच दृश्यभूमि स्तर की अंतर्संयोजकता का प्रतिमान शामिल है। यह संकल्पना, जाति-आवास पर ध्यान केंद्रित करने की जगह जैवभौगोलिक परास को विस्तारित करने पर समावेशी ध्यान-संकेंद्रण करने का पक्षसमर्थन करती है, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्राकृतिक समंजन सीमित हुए बिना आगे बढ़ सकें।
26.    निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
परिच्छेद के अनुसार, पारितंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावस्वरूप
1.    इसके वनस्पतिजात और प्राणिजात में से कुछ का स्थायी विलोपन हो सकता है।
2.    स्वयं पारितंत्र का स्थायी विलोपन हो सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a)    केवल 1
(b)    केवल 2
(c)    1 और 2 दोनों
(d)    न तो 1, न ही 2
उत्तर-(a)
उत्तर की स्पष्टता हेतु परिच्छेद की ये पंक्तियां देखें-‘‘हिमालय,…………जलवायु परिवर्तन के प्रति सुभेद्य है। इसके खतरों में आनुवांशिक संसाधनों और जातियों, आवासों का संभावित क्षय और सहगामी रूप से पारितंत्र के लाभों में कमी आना शामिल है।’’ स्पष्ट है कि वनस्पतिजात एवं प्राणिजात आनुवांशिक संसाधन एवं जातियां हैं। जिनमें से कुछ का क्षय अर्थात् विलोपन हो सकता है किंतु पारितंत्र के लाभों में कमी आ सकती है न कि पारितंत्र का स्थायी विलोपन की संभावना है।
27.    निम्नलिखित में से किस एक कथन का सबसे सटीक निहितार्थ यह है कि समकालीन संरक्षण उपागम की ओर ध्यान अंतरित करने की आवश्यकता है?
(a)    प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हिमालय के पारितंत्र पर दबाव डालता है।
(b)    जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षण प्रतिरूपों में बदलाव, अनावृष्टि की घटनाएं और जीवीय हस्तक्षेप होता है।
(c)    समृद्ध जैवविविधता, जिसमें विशेषक्षेत्री विविधता शामिल है, हिमालय क्षेत्र को एक जैवविविधता तप्तस्थल बनाता है।
(d)    हिमालय के जैवभौगोलिक क्षेत्र को इस तरह समर्थ बनाना चाहिए कि वह अबाध रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूल बनता रहे।
उत्तर-(d)
परिच्छेद से स्पष्ट है कि समकालीन संरक्षण उपागम संकल्पना जाति-आवास पर ध्यान केंद्रित करने की जगह जैवभौगोलिक परास को विस्तारित करने के समावेशी ध्यान संक्रेंद्रण करने का पक्ष समर्थन करती है।
28.    इस परिच्छेद द्वारा क्या सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संदेश दिया गया है?
(a)    विशेष क्षेत्रीयता हिमालयी क्षेत्र की लाक्षणिक विशेषता है।
(b)    संरक्षण प्रयासों का बल कतिपय जातियों या आवासों के स्थान पर जैवभौगोलिक परासों पर होना चाहिए।
(c)    जलवायु परिवर्तन का हिमालय के पारितंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है।
(d)    हिमालय के पारितंत्र के अभाव में, उच्चभूमियों और अनुप्रवाह क्षेत्रों के समुदायों के जीवन का कोई धारण-आधार नहीं होगा।
उत्तर-(c)
जलवायु परिवर्तन परिच्छेद का केंद्रीय विषय है, अतः अभीष्ट विकल्प ‘c’ है।
29.    परिच्छेद के संदर्भ में, निम्नलिखित पूर्वधारणाएं बनाई गई हैं :
1.    प्राकृतिक पारितंत्र बनाए रखने के लिए, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का पूरी तरह परिहार किया जाना चाहिए।
2.    पारितंत्र को, न केवल मानवोद्भविक,  बल्कि प्राकृतिक कारण भी प्रतिकूलतः प्रभावित कर सकते हैं।
3.    विशेषक्षेत्री विविधता के क्षय से पारितंत्र का विलोपन होता है।
उपर्युक्त धारणाओं में से कौन-सी सही है/हैं?
(a)    1 और 2
(b)    केवल 2
(c)    2 और 3
(d)    केवल 3
उत्तर-(a)
अनुच्छेद अंश ‘‘हिमालय का पारितंत्र प्राकृतिक संसाधनों के दोहन…….क्षति के प्रति अत्यंत सुभेद्य है’’ से स्पष्ट है कि पूर्वधारणा 1 सही है। पूर्वधारणा 2 की सत्यता इस आधार पर मानी जा सकती है कि पारितंत्र पर खतरा प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ जनसंख्या बोझ एवं जीवीय प्रभावों के कारण भी है।
परिच्छेद – 2
यह अक्सर भुला दिया जाता है कि विश्वव्यापीकरण केवल अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों और लेन-देन संबंधी नीतियों के बारे में ही नहीं है बल्कि इसका सरोकार समान रूप से राष्ट्र की घरेलू नीतियों से भी है। अंतर्राष्ट्रीय रूप से (WTO आदि द्वारा) मुक्त व्यापार और निवेश प्रवाह संबंधी नियत दशाओं को पूरा करने हेतु किए गए आवश्यक नीतिगत परिवर्तन प्रत्यक्षतः घरेलू उत्पादकों तथा निवेशकों को प्रभावित करते हैं। किंतु विश्वव्यापीकरण में अधःशायी आधारभूत दर्शन कीमतों, उत्पादन तथा वितरण प्रतिरूप के निर्धारण के लिए बाज़ारों की अबाध स्वतंत्रता पर बल देता है तथा सरकारी हस्तक्षेपों को उन प्रक्रियाओं के रूप में देखता है जो विकृति उत्पन्न करती हैं तथा अदक्षता लाती हैं। अतः सार्वजनिक उद्यमों का विनिवेशों तथा विक्रयों द्वारा निजीकरण हो; और अभी तक जो क्षेत्र और कार्यकलाप सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित हैं, आवश्यक है कि उन्हें प्राइवेट क्षेत्र के लिए खोल दिया जाए। इस तर्क का विस्तार शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं तक है। कामगारों की छंटनी के माध्यम से श्रम-बल का समायोजन करने पर लगे प्रतिबंध हटा लिए जाने चाहिए तथा तालाबंदी पर लगे प्रतिबंधों को हटाकर निर्गमन को अपेक्षाकृत आसान बनाया जाना चाहिए। रोज़गार तथा वेतन बाज़ार शक्तियों की स्वतंत्र गतिविधियों द्वारा शासित होना चाहिए, क्योंकि उनको नियंत्रित करने में कोई भी उपाय निवेश को हतोत्साहित कर सकते हैं तथा उत्पादन में अदक्षता भी उत्पन्न कर सकते हैं। सर्वोपरि रूप से, राज्य की भूमिका में कमी लाने के समग्र दर्शन के अनुरूप, ऐसे राजकोषीय सुधार किए जाने चाहिए जिनसे आमतौर पर कराधान के स्तर निम्न हों तथा वित्तीय विवेक के सिद्धांत के पालन हेत शासकीय खर्च न्यूनतम हो। यह सब घरेलू स्तर पर किए जाने वाली नीतिगत कार्य हैं तथा विश्वव्यापीकरण कार्यसूची  के सारभाग विषयों, यथा, माल और वित्त के स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय प्रवाह से प्रत्यक्षतः संबंधित नहीं हैं।
30.    इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण के अंतर्गत सरकारी हस्तक्षेपों को ऐसी प्रक्रियाओं के रूप में देखा जाता है, जिनके कारण
(a)    अर्थव्यवस्था में विकृतियां और अदक्षता आती है।
(b)    संसाधनों का इष्टतम उपयोग होता है।
(c)    उद्योगों को अपेक्षाकृत अधिक लाभप्रदता होती है।
(d)    उद्योगों के संबंध में बाज़ार शक्तियों की गतिविधि स्वतंत्र होती है।
उत्तर-(a)
परिच्छेद के मध्य में स्पष्टतः दर्शित है- ‘‘सरकारी हस्तक्षेपों को………..जो विकृति उत्पन्न करती है तथा अदक्षता लाती है।’’
31.    इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण का आधारभूत दर्शन क्या है?
(a)    कीमतों और उत्पादन के निर्धारण के लिए उत्पादकों को पूर्ण स्वतंत्रता देना
(b)    वितरण प्रतिरूप विकसित करने हेतु उत्पादकों को स्वतंत्रता देना
(c)    कीमतों, उत्पादन और रोज़गार के निर्धारण हेतु बाज़ारों को पूर्ण स्वतंत्रता देना
(d)    आयात और निर्यात के लिए उत्पादकों को स्वतंत्रता देना
उत्तर-(c)
विश्वव्यापीकरण का आधारभूत दर्शन कीमतों, उत्पादन तथा वितरण प्रतिरूप के निर्धारण के लिए बाज़ारों की अबाध स्वतंत्रता पर बल देता है। अन्य विकल्पों में उत्पादकों की स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है।
32.    इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सा/से आवश्यक है/हैं?
1.    सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण
2.    सार्वजनिक व्यय की विस्तार-नीति
3.    वेतन और रोज़गार निर्धारित करने की बाज़ार शक्तियों की स्वतंत्र गतिविधि
4.    शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सामाजिक सेवाओं का निजीकरण
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए :
(a)    केवल 1    (b)    केवल 2 और 3
(c)    1, 3 और 4    (d)    2, 3 और 4
उत्तर-(c)
परिच्छेद में सार्वजनिक व्यय की विस्तार नीति का उल्लेख नहीं है। शेष विकल्पों में दिए गए सभी उपबंध उपस्थित हैं। अतः अभीष्ट विकल्प ‘c’ है।
33.    इस परिच्छेद के अनुसार, विश्वव्यापीकरण की प्रक्रिया में राज्य की भूमिका कैसी होनी चाहिए?
(a)    विस्तृत होती हुई
(b)    घटती हुई
(c)    सांविधिक
(d)    उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर-(b)
परिच्छेद में राज्य की भूमिका में कमी लाने का उल्लेख है, अतः अभीष्ट विकल्प ‘b’ है।
निम्नलिखित 4 (चार) प्रश्नांशों के लिए निर्देश :
निम्नलिखित आलेख, दो फल-विक्रेताओं A और B का वर्ष 1995 से 2000 तक, प्रति वर्ष  हजारों रु. में औसत लाभ दर्शाता है। इस आलेख पर विचार कीजिए और आगे आने वाले 4 (चार प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए :
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34.    किस वर्ष में A और B के औसत लाभ समान है?
(a)    1995    (b)    1996
(c)    1997    (d)    1998
उत्तर-(b)
ग्राफ से स्पष्ट है कि वर्ष 1996 में A और B के औसत लाभ 4000 रुपये हैं जो कि समान है। जबकि अन्य वर्षों में औसत लाभ समान नहीं है।
35.    वर्ष 1998 में, B और A के औसत लाभ के बीच क्या अंतर है?
(a)    – रु. 100    (b)    – रु. 1,000
(c)    + रु. 600    (d)    – रु. 300
उत्तर-(c)
वर्ष 1998 में B का औसत लाभ = 4000 रु.
वर्ष 1998 में A का औसत लाभ = 3400 रु.
वर्ष 1998 में B और A के औसत लाभ के बीच अभीष्ट अंतर = 4000 – 3400 = 600 रु.
36.    A ने वर्ष 2000 में, वर्ष 1999 के औसत लाभ से कितना अधिक औसत लाभ अर्जित किया?
(a)    रु. 200    (b)    रु. 1,000
(c)    रु. 1,5000    (d)    रु. 2,000
उत्तर-(d)
A द्वारा वर्ष 2000 में अर्जित औसत लाभ
= 6000 रुपये
तथा वर्ष 1999 में अर्जित औसत लाभ
= 4000 रुपये
लाभ में अंतर = 6000 – 4000 = 2000 रुपये
37.    वर्ष 1997 से वर्ष 2000 तक, B के औसत लाभ की क्या प्रवृत्ति है?
(a)    अवर्धमान    (b)    अह्रासमान
(c)    अपरिवर्ती    (d)    अस्थिर
उत्तर-(b)
वर्ष 1997 से वर्ष 2000 तक B के औसत लाभ की प्रवृत्ति में कमी नहीं हुई है। जबकि 1997 से 1998 तक लाभ की प्रवृत्ति स्थिर है तथा 1998 से 2000 तक लाभ की प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही है। अतः 1997 से 2000 तक लाभ की प्रवृत्ति अह्रासमान है।
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(a)    इस बोध में कि न्यायालय में सरकार से स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है
(b)    एक मानव को राजनैतिक इकाई के रूप में इस प्रकार पहचानने में कि वह अन्य नागरिकों से विशिष्ट हो जाए
(c)    ऐसे विकेंद्रित समाज में जिसमें मनुष्यों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाए
(d)    इस समझ में कि स्वतंत्रता और पाबंदियां परस्पर पूरक हैं
उत्तर-(a)
कथन का सर्वश्रेष्ठ औचित्य विकल्प (a) में ही निहित है।
निम्नलिखित 7 (सात) प्रश्नांशों के लिए निर्देश :
निम्नलिखित दो परिच्छेदों को पढ़िए और प्रत्येक परिच्छेद के आगे आने वाले प्रश्नांशों के उत्तर दीजिए। इन प्रश्नांशों के आपके उत्तर इन परिच्छेदों पर ही आधारित होने चाहिए।
परिच्छेद – 1
अनेक राष्ट्र अब पूंजीवाद में विश्वास रखते हैं तथा सरकारें अपने लोगों के लिए संपत्ति सर्जित करने की रणनीति के रूप में इसे चुनती हैं। ब्राजील, चीन और भारत में उनकी अर्थव्यवस्थाओं के उदारीकरण के पश्चात् देखी गई भव्य आर्थिक संवृद्धि इसकी विशाल संभाव्यता और सफलता का प्रमाण है। तथापि, विश्वव्यापी बैंकिंग संकट तथा आर्थिक मंदी कइयों के लिए विस्मयकारी रहा है। चर्चाओं का केंद्रबिंदु मुक्त बाज़ार संक्रियाओं और बलों, उनकी दक्षता और स्वयं सुधार करने की उनकी योग्यता की ओर हुआ है। विश्वव्यापी बैंकिंग प्रणाली की असफलता को दर्शाने हेतु न्याय, सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के मुद्दों का वर्णन विरले ही किया जाता है। इस प्रणाली के समर्थक पूंजीवाद की सफलता का औचित्य ठहराते ही जाते हैं और उनका तर्क है कि वर्तमान संकट एक धक्का था।
उनके तर्क उनके विचारधारागत पूर्वग्रह को इस पूर्वधारणा के साथ प्रकट करते हैं कि अनियंत्रित बाज़ार न्यायोचित तथा समर्थ होता है और निजी लालच का व्यवहार वृहत्तर लोकहित में होगा।
कुछ लोग पूंजीवाद और लालच के बीच द्विदिशिक संबंध होने की पहचान करते हैं; कि दोनों एक-दूसरे को परिपुष्ट करते हैं। निश्चित रूप से, इस व्यवस्था से लाभ पाने वाले धनाढ्य और सशक्त खिलाड़ियों के बीच हितों के टकराव, उनके झुकाव और विचारधाराओं के अपेक्षाकृत अधिक ईमानदार संप्रत्ययीकरण की आवश्यकता है; साथ ही संपत्ति सर्जन को केंद्रबिंदु में रखने के साथ उसके परिणामस्वरूप जनित सकल असमानता को भी दर्शाया जाना चाहिए।
52.    इस परिच्छेद के अनुसार, ‘‘मुक्त बाज़ार व्यवस्था’’ के समर्थक किसमें विश्वास करते हैं?
(a)    सरकारी प्राधिकारियों के नियंत्रण से रहित बाज़ार
(b)    सरकारी संरक्षण से मुक्त बाज़ार
(c)    बाज़ार की स्वयं के सुधार की क्षमता
(d)    निःशुल्क वस्तुओं व सेवाओं के लिए बाज़ार
उत्तर-(a)
मुक्त बाजार व्यवस्था के समर्थकों का तर्क है कि अनियंत्रित बाज़ार न्यायोचित तथा समर्थ होता है। यहां अनियंत्रित बाज़ार से तात्पर्य है-सरकारी प्राधिकारियों के नियंत्रण से रहित बाज़ार।
53.    ‘‘विचारधारागत पूर्वग्रह’’ के संदर्भ में, इस परिच्छेद का निहितार्थ क्या है?
(a)    मुक्त बाज़ार न्यायोचित होता है किंतु सक्षम नहीं
(b)    मुक्त बाज़ार न्यायोचित नहीं होता किंतु सक्षम होता है
(c)    मुक्त बाज़ार न्यायोचित और सक्षम होता है
(d)    मुक्त बाज़ार न तो न्यायोचित होता है, न ही पूर्वग्रहयुक्त
उत्तर-(c)
परिच्छेद में स्पष्टतः उल्लिखित है कि अनियंत्रित बाजार न्यायोचित तथा समर्थ होता है।
54.    इस परिच्छेद से ‘‘निजी लालच का व्यवहार वृहत्तर लोकहित में होगा’’,
1.    पूंजीवाद की झूठी विचारधारा को निर्दिष्ट करता है।
2.    मुक्त बाज़ार के न्यायसंगत दावों को स्वीकार करता है।
3.    पूंजीवाद के सद्भावपूर्ण चेहरे को दिखाता है।
4.    परिणामी सकल असमानता की उपेक्षा करता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a)    केवल 1    (b)    2 और 3
(c)    1 और 4    (d)    केवल 4
उत्तर-(d)
‘‘निजी लालच का व्यवहार वृहत्तर लोकहित में होगा।’’ कहकर पूंजीवाद के समर्थक असमानता की उपेक्षा करते हैं।

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